भारत में दो कार्यप्रणालियाँ कार्यरत हैं| एक है सरकारी कार्य पद्धति और दूसरी है आम कार्य प्रणाली| क्यूंकि ख़ास चीज़ें चुन कर लायी जाती हैं और भारत सरकार चुनी जाती है अतः सरकार ख़ास हो जाती है| फिर सरकार को आम चीज़ें कैसे पसंद आएँगी| अतैव सरकार को आम कार्य पद्धति रास नहीं आती और भारत में काम का सरकारी तरीका इतना ख़ास है की किसी भी को काम सरकारी तरीके से अंजाम नहीं दिया जा सकता| इन दोनों पद्धतियों में तालमेल रहे और काम सुचारू रूप से हो सके इसलिए भारत में दो तरह की संस्थाएं भी हैं कार्यरत हैं सरकारी और गैर सरकारी|
तो हुआ कुछ यूँ की मैं पिछले दिनों इन्टरनेट सुविधा के लिए एक सरकारी दफ्तर चला गया| यानि की मैं बीएसएनएल(भारत संचार निगम लिमिटेड BSNL) के कार्यालय सुबह तडके ही पहुच गया| दफ्तर के आगे ताला लगा था| मैंने अपनी घडी का मुखड़ा देखा| मेरी घडी ने मुझे गाली दी - मूर्ख ये भी कोई समय है सरकारी दफ्तर आने का? तू बेरोजगार है इसका ये मतलब तो नहीं की बड़े बाबु के पास भी कोई काम नहीं है| उनको बड़े बेटे को स्कूल छोड़ना है| लेखा विभाग की मैडम की सास ने आज फिर झगडा किया है| वो अपने सास की गालियों का जवाब दे कर ही आएँगी| छोटे बाबु की साली आने वाली है, उनको स्टेशन से लाने गए हैं| मुझे खुद पर ग्लानी हुई| मैं सामने की चाय वाली दुकान पर चला गया| भारतीय आत्मीयता पर मुझे पूरा भरोसा और अभिमान है| वहां एक अधेढ़ उम्र का आदमी पहले से बैठा था, मैं उसी के बगल में टिक लिया| मुझे पता था की वक़्त काटना अब ज्यादा मुश्किल नहीं होगा|
चाय की आखिरी चुस्की लेते हुए उसने मुझसे पुछा - BSNL के ओफ्फिस आये थे का? मैंने हाँ में सर हिला दिया| उसने कप निचे रखा और राजश्री गुटके का पाकेट ठीक उसी तरह फाड़ कर मुह में डाला जैसा की प्रचार में नहीं दिखाते हैं| असल में मैंने किसी व्यक्ति को वैसे गुटका खाते देखा ही नहीं है जैसा की प्रचार में दिखाते हैं| गुटका और पान सुपारी के प्रचार में बताते हैं की एक एक दाना चुन कर डाला गया है और हर दाना खुशबूदार और पौष्टिक चीज़ों से परिपूर्ण है, जबकि खाने वाले को देख कर ऐसा लगता ही नहीं है की वो इतनी मेहनत से तैयार की गयी चीज़ खा रहा है| सारे गुटका खाने वाले बड़े एहसान फरामोश होते हैं| क्यूंकि प्रचार वाले गलत चीज़ तो दिखायेंगे नहीं, इतना पैसा लगता है एक प्रचार बनाने में| कोई क्यूँ इतना पैसा लगा कर झूठ बोलेगा| मैं इसी उधेड़बुन में लगा हुआ था की उस एहसान फरामोश इंसान ने दूसरा सवाल दागा - इन्टनेट लगवाना है क्या?
मैं - हाँ|
आदमी - तो एयरटेल के ओफ्फिस चले जाना था| यहीं पासे में हैगा|
मैं- नहीं उनकी लाइन वहां तक नहीं गयी है|
आदमी - वही तो कहें| नहीं तो कौन साला BSNL को पूछता हैगा| (थोडा रुक कर) प्लेसमेंट का टैम आ गया है ना, जरूरत होगा| कौन कॉलेज में हैं?
मैं - नहीं मैं कॉलेज में नहीं हूँ|
मैं खुद को आने वाले यक्ष प्रश्नों के लिए तैयार कर रहा था लेकिन तभी एक हेलमेट धारी व्यक्ति हमारे सामने आया| वो मेरे बगल में बैठे आदमी से मुखातिब हो कर बोला| कब आये मिश्रा जी?
मिश्रा जी - बस बाबु अभिये आये| खोल दें का?
बाबु - हाँ चलिए वहीँ चाय माँगा लेंगे| आज सब निपटारा करना है, बड़ा बाबु पाहिले ही टिल्लों टिल्लों शुरू कर दिये हैं|
मिश्रा जी अपनी जगह से उठे. पीक की एक पिचकारी जो की मेरे पैर के बस थोड़े ही ऊपर से हो का गुजरी, सीधा निशाने पर गयी| बिलकुल वहीँ जहाँ लिखा था - यहाँ थूकना मना है| जिस जगह यह अनर्थकारी वाक्य लिखा था वो पहले ही पान और गुटके की पीक से लाल हो चुकी थी| मिश्रा जी बाबु के साथ दफ्तर के दरवाज़े तक गए, बड़ी सहजता से चाबियों का एक गुच्छा निकला और ताले में एक चाभी घुसेड दी| ताला देख कर की बहुत पुराना और 'made in aligarh 12 lever strong' होने का सबूत दे रहा था| मिश्रा जी ने थोडा और जोर लगाया, दरवाज़े को दो चार गालियाँ दी और फिर जोर से धक्का दिया| BSNL का दफ्तर ठीक ११:१५ पर खुल चूका था| मैं मिश्रा जी को देख कर भाव विभोर हो उठा| सच कहते हैं संसार में अच्छे लोगों की कद्र नहीं है| इस इंसान को तो RAW में होना चाहिए था| मेरे बगल में इतनी देर बैठा बात करता रहा, मुझे एयरटेल ऑफिस का पता भी बता दिया लेकिन ये कभी पता नहीं चलने दिया की वो उसी दफ्तार का मुलाजिम है और चाभियाँ उसी के पास हैं| उलटे दफ्तर वालों को एक दो बार गाली भी दे दी|
समोसे के साथ जो चटनी मिली थी उसकी दो बूँदें जो कटोरी में बाकी रह गयीं थी वो चाट कर मैं उनके पीछे हो लिया| अन्दर जा कर मैंने वही पुरानी आत्मीयता दिखा कर मिश्रा जी से कहा - एक फॉर्म दे दीजिये|
मिश्रा जी ने निर्विकार भाव से पुछा - कौन बात का फारम?
मैं समझ गया की व्यक्ति अब सरकारी दफ्तर में प्रवेश कर चूका है| अब वो सरकारी हो चूका है और मैं एक आम आदमी हूँ| मैंने मन ही मन कहा धन्य हो मिश्रा जी की कर्त्तव्यपरायणता| मैंने भी निर्विकार भाव से कहा - नया इन्टरनेट कनेक्शन लेना है उसका फॉर्म|
मिश्रा जी- नया कनेक्शन मैडम देती हैं| अभी आई नहीं हैं| थोडा देर बैठिये|
मैं बैठा शांति से बैठ कर दिवार पर चिपके इश्तेहार और सूचनाएं पढता रहा| एक जगह लिखा था कस्टमर वेटिंग एरिया - उसके निचे एक धुल-धूसरित कुर्सी पड़ी थी जिसका एक पाया टूटा हुआ था| मैंने सोचा १००-२०० साल के बाद जब खुदाई में इस दफ्तर के अवशेष मिलेंगे तो कोई इतिहासकार लिखेगा - भारतीय शैली के कार्यालयों में ऐसी कुर्सियां पाई जाती थीं| इनकी उत्पत्ति के समय का कोई ज्ञान नहीं है| ऐसी कुर्सियां ख़ास तौर पर आम लोगों के लिए रखी जाती थीं, ताकि वो बैठ ना सकें|
इसी बीच अदम गोंडवी की एक कविता की कुछ पंक्तियाँ याद आयीं -
"मुक्तकामी चेतना अभ्यर्थना इतिहास की,
ये समझदारों की दुनिया है विरोधाभास की|
जिसे कहते हो तुम इस देश का स्वर्णिम अतीत,
वो कहानी है महज प्रतिशोध की संत्रास की|"
अदम जी को याद करके मेरे अन्दर का दर्शनशाश्त्री अब कुलांचे मारने लगा था, इसी तरह मैंने आधा घंटा काट दिया था, तभी एक अधेड़ उम्र की महिला कुछ ३-४ बड़े थैले लिए अन्दर आई और मेरे टेबल के सामने आ कर उन्हें पटक दिया| मैं समझ गया की लेखा मैडम आ गयीं हैं और उनका मूड कुछ सही नहीं है| तो मैंने भी अपने दर्शन को धोबी पछाड़ मारा और जितना हो सकता था दुखी हो कर बोला - मैडम एक फॉर्म दे दीजिये, नया ब्रॉडबैंड लगवाना है| कुछ देर तक अपना वो अपना सारा सामान सजाती रहीं| फिर उन्होंने बाल बनाने शुरू किये और जोर से आवाज़ लगायी मिश्र जी देखिये क्या मांग रहे हैं| उनके बोलने के लहजे से मुझे लगा की मैंने किसी गलत चीज़ की मांग कर दी है| जब छिछोरे लड़के बस या ट्रेन में लड़कियों से पप्पी की मांग कर देते हैं तो लड़कियां अपने तथाकथित भाइयों को ऐसे ही बताती हैं - दोखो ना भैया क्या मांग रहा है| मिश्रा जी फिर से मेरे पास आये और उसी अनमनस्क भाव से बोले का चाहिए सर? मैंने भी उसी निर्विकार भाव से अपनी बात दुहरा दी| इस बार उन्होंने ना नहीं की| वो गए और नीला सा फॉर्म ला कर मेरे सामने पटक दिया| मैडम के सामने एक गिलास पानी लाये और उसको पटका नहीं प्यार से रख दिया| उनके पानी पीने तक मैंने फॉर्म पूरा भर लिया था, उनका चेहरा भी अब कुछ शांत हो चला था| मैंने थोड़ी देर इंतज़ार किया फिर उनसे पुछा इसे जमा कहाँ करना है? मैडम ने हलकी से मुस्कान दी और मेरे हाथ से फॉर्म ले लिया| फॉर्म पढ़ कर बोलीं दाना पानी के पास रहते हो? मैंने कहा हाँ| वहां तो एयरटेल की लाइन ही नहीं गयी है| मेरी समझ में नहीं आ रहा था की आखिर BSNL और एयरटेल के बीच ऐसा कैसा प्रेम है की BSNL के ऑफिस वाले भी एयरटेल का कनेक्शन लगवाने को बोलते हैं| फिर उन्होंने बताया की उनकी एक ननद भी वहीं पास में होशंगाबाद लिंक रोड पे रहती हैं| उसके बाद उन्होंने मुझे बताया की कैसे उनकी ननद उन्हें परेशान करती हैं और कैसे आज सुबह ही उनकी अपनी जेठानी से लड़ाई हो गयी है| ये वार्ता इतनी लम्बी चल जाएगी मुझे पता नहीं था| मुझे अब समझ आया की सुन्दरकाण्ड में जब हनुमान जी कहते हैं -
तब तव बदन पैठहउँ आई ।
सत्य कहउँ मोहि जान दे माई ॥
तो उनका भाव क्या था| लेकिन प्रभु का नाम याद करते ही चमत्कार हुआ| इन माई की बुद्धि का विकास हुआ और वो अचानक से चुप हो गयी| उन्होंने कहा आप जाइये और ये फॉर्म बड़े बाबु को दे दीजिये| मैंने राहत की सांस ली| फिर मुझे याद आया की बड़े बाबू तो अभी तक आये ही हैं हैं| १२:३० हो गए थे और अब मेरा मन नहीं हो रहा था की मैं वहां रुक कर और तमाशा देखूं| तो मैंने निश्चय किया की कल फिर आ जाऊंगा| जैसे ही मैं बहार निकला मैंने देखा की मिश्रा जी फिर उसी दुकान पे बैठे हैं| फर्क ये था की इस बार वो चाय नहीं बीडी पी रहे थे| चूँकि इस बार वे ऑफिस के बाहर थे तो उन्होंने फिर उसी आत्मीयता का उदहारण प्रस्तुत किया| मुझे हाथ के इशारे से बगल में बुलाया| मैं ज्यादा देर करने के मूड में नहीं था सो मैंने कहा - बड़े बाबू तो आये नहीं हैं| कल आ कर फॉर्म दे दूंगा|
मिश्रा जी ने हसते हुए मेरी तरफ देखा उनकी आँखें जैसे मेरा उपहास कर रहीं हो| बोल रही हों की अभी तू बच्चा है| तुझे क्या पता की बड़े बाबु कितनी बड़ी चीज़ हैं| फिर मुझसे बोले - ठीक है चलिए फिर मुलाकात होगी|
अगले दिन मैं घर से ही १२ बजे निकला| मैं खुद को सरकारी तरीके में रंगने की कोशिश कर रहा था| जब तक मैं ऑफिस पंहुचा मुझे १ बज चुके थे| मैंने जाते ही मिश्रा जी से पुछा बड़े बाबु आये हैं की नहीं? मिश्रा जी ने कहा - हाँ आये तो हैं| लेकिन अब फारम लेंगे नहीं| सनीवार है ना| नया आवेदन बस १२ बजे तक लेते हैं| और वईसे भी अब तो ओफ्फ़िस बंद करने का टैम हो गया है ना| मैंने सर पीट लिया| मेरे समझ में आ गया था की मैं सरकारी चक्रव्यूह में फस गया हूँ, अब गुरुदेव की सहायता लेनी पड़ेगी|
सोमवार को वापिस आने का फैसला कर के मैं चला गया|
क्रमशः -
Pankaj Kapoor ka Office Office dekhe hain aap Sab TV pe? Waisa hi ek episode dikha diye yahan par..
ReplyDeleteLamba post hai kyunki internet lagne mein lamba time lagega.. Readers ko uljhaye rehne chahte hain aap next time likhne tak..
Ye piece 'Niraash Aadmi ki Diary" ke author ne likha hai, evidently! :P
Uske alawa.. Jahan tak sarkari kaamon ki baat hai, ye bhav-tav mujhe gussa kar deta hai.. Kahan ka India Shining?
Sunat thain jee, likhte rahiyega!
Aakhri baat ye hai ki aap kripa kar ke *Mishra* upnaam ko badnaam karna band kijiye..
mujhe bhi office-office yaad aa raha tha.isiliye maine lekh ke shirshak mein hi sab kuchh saaf kar diya hai. is lekh mein logon ke liye kuchh bhi naya nahi hai
ReplyDeletetippani ke liye dhanyawad