Monday, February 21, 2011

परस्पर विरोधी संवाद

परस्पर विरोधिता क्या है? मेरे मित्र ने अचानक ऐसा सवाल खड़ा कर मुझे झटका दे दिया। पिछले आधे घंटे से मैं उससे परस्पर विरोधी संवादों के विषय में ही चर्चा कर रहा था। अब मेरे समझ में आया की उसे इस संवाद में इतना मज़ा क्यूँ आ रहा था। असल में वो कुछ समझ ही नहीं पा रहा था। मैंने सोचा ये मामला मेरे बस का नहीं है। इस समस्या का समाधान गुरुदेव ही कर सकते हैं। अतैव मैं उसे गुरुदेव की शरण में ले गया।

गुरुदेव- (मेरी तरफ इशारा करते हुए) इसका नाम क्या है ?
मित्र - शक्ति...
गुरुदेव - ध्यान से देखो इसे। लगता है की इसमें शक्ति है? इसका नाम बलहीन दास या छीणप्रसाद होना चाहिए था। पर नहीं, इसका नाम शक्ति है। यही परस्पर विरोधिता है।
घर आते वक़्त रास्ते में दो झुग्गियां हैं, उनका नाम क्या है?
मित्र - विष्णु नगर और सरस्वती विहार।
गुरुदेव - क्या सरस्वती विहार में एक भी स्कूल है? नहीं| क्या वहां का कोई भी बच्चा पढने जाता है- नहीं। लेकिन उसका नाम फिर भी सरस्वती विहार है।
मैंने सोचा की मैं भी अपना सेन्स ऑफ़ ह्यूमर इस्तेमाल कर लूँ। मैंने कहा - आउटसोर्सिंग का ज़माना है सरस्वती जी तो अरेरा कालोनी के स्कूलों में बस्ती हैं|
गुरुदेव - देखा ये दिमाग से भी शक्तिहीन है। गलत समय पे गलत मजाक। ज्यादा अफलातूनी दिखाने की जरूरत नहीं है चुप रहो। (मेरे मित्र से मुखातिब हो कर) विष्णु को जलपति और धनेश की उपाधि दी जाती है है लेकिन तुमने विष्णु नगर में एक भी नल देखा है? क्या वहां कोई अमीर आदमी रहता है? नहीं ना। यही होती है परस्पर विरोधिता।

मैंने इज्ज़त बचाने की पहल की और इस बार कोई पते की कोई बात बोलने की कोशिश भी। मैंने कहा जिस ट्रेन से हम लोग मणिपाल जाते थे उसका नाम मंगला लक्षद्वीप एक्सप्रेस था। लेकिन वो लक्षद्वीप नहीं जाती थी। और खुद ही हंसने लगा। गुरुदेव मौन रहे। मैं थोड़ी देर तक अपनी मूर्खता पे ठहाका लगता रहा। मेरे चुप होने के बाद गुरुदेव ने कहा - एक मूर्ख का दिमाग चलाना भी स्वाभाविक तौर से परस्पर विरोधिता है।


पुनश्चः - मेरा ब्लॉग पढने वालों की फेहरिस्त में कुल ७ विदेशी हैं। २ मलेशियाई, २ अरबी, १ अमेरिकी, १ ब्रिटिश और १ चीनी। अब मेरे समझ में ये नहीं आ रहा की ये अँगरेज़ मेरा हिंदी वाला ब्लॉग कैसे पढ़ पा रहे होंगे। उनका मेरे ब्लॉग को नियमित रूप से पढना, मेरे लिए एक परस्पर विरोधी घटना है।

Friday, February 11, 2011

एक आवारा लड़के के घड़ी की डायरी

समय : सुबह बजे
प्रेमिका नंबर जिसे पता है की उसके प्रेमी ने देर रात तक पढाई की है और अभी वो थक कर सो रहा होगा, ने एक प्यार भरा मैसेज भेजा है ये उसके कॉलेज जाने का टाइम है बस में छिछोरे लड़के ये समझ लें की वो पहले ही किसी छिछोरे की हो चुकी है इस बात की शहादत देने के लिए वो पूरे रास्ते मैसजे करती हुई जाएगी जब तक वो कॉलेज पहुचेगी प्रेम की वही घिसी पीटी बातें लिख कर भेजती रहेगी जो वो रोज भेजा करती है कॉलेज में उसके और भी प्रेमी हैं उसमें से कुछ उसके छिछोरे प्रेमी से थोड़े अच्छे और ज्यादा पैसे वाले हैं| सो कॉलेज पहुचते ही उसने मैसजे करना बंद कर दिया है और इस बात का संकेत दे रही है की उसे अभी भी सच्चे प्रेम की तलाश है

समय: सुबह :३० बजे
माताजी का फ़ोन आया है लेकिन एक छोटी सी रिंग के बाद ही फ़ोन कट गया है उन्हें याद गया की बेटे ने बताया है की वो आज कल रात भर पढाई कर रहा है और कल उसने झुंझला कर कहा था की इतनी सुबह उसे ना उठाया जाये माँ ने प्रेम में वशीभूत हो कर फ़ोन काट दिया है

समय: सुबह :३० बजे
प्रेमिका नंबर (जो खुद अभी-अभी ही उठी है) ने ये बताने के लिए फ़ोन किया है की वो कल रात जो भी हुआ उसके लिए शर्मिंदा है तीन बार जोर- जोर से चीखने के बाद फ़ोन अब चुप हो गया है प्रेमिका ने समझा है की वो नाराज़ है और शायद इसीलिए फ़ोन नहीं उठा रहा है। गुस्सा कम करने और अपना अथाह प्रेम जताने के लिए उसने भी ३-४ मैसेज भेज दिये हैं|

समय: सुबह १०:१५ बजे
कमरे में धुप की किरणें स्पार्टा के सैनिकों की तरह घुस आई हैं| अब उठने के आलावा कोई रास्ता नहीं है| रजाई के अन्दर सोए इंसान के उठ जाने की वजह से रजाई के ऊपर सोया फ़ोन निचे गिर गया है| उसके अंगों का विच्छेद हो चूका है| बैटरी छिटक कर दूर जा गिरी है| पिछली बार प्रेमिका नंबर १ को प्रेम का विश्वास दिलाने के लिए गुस्से का जो नाटक किया गया था उसमें फ़ोन को दिवार पर फेंकना भी शामिल था| इसी वजह से पिछला हिस्सा ढीला हो गया है और फ़ोन का गिरते ही विच्छेदन होने लगा है| थोड़ी देर आँख मलने के बाद, वो मेरी सौतन यानि अपनी टेबल घड़ी को देखता है|
सुबह उठ कर सैर और व्ययायाम करने के महत्व को समझते हुए वो खुद को कोसता है; फिर रजाई में पूरा मुंह ढांप कर सोने की कोशिश करता है|

समय: सुबह ११ बजे
अब रजाई के अन्दर भी गर्मी लगने लगी है, आँखें भी अब सोने से इनकार कर रही हैं| मजबूरन उसे उठना पड़ता है| उठ कर वो सीधा अपने फ़ोन के पास जाता है, उसके सभी हिस्सों को नीयत स्थान पर फिट करता है| फ़ोन के ऑन होते ही दो मैसेज आते हैं और 'मैसेज मेमोरी फुल' होने का सन्देश प्रदर्शित होता है| वो अनमनस्क भाव से प्रेमिका नंबर १ के सारे मैसेज एक साथ मिटा देता है| फिर उसे एक प्यारा सा पुचकारू मैसेज भेज देता है, जिससे यह निश्चित हो जाता है की अब दिन भर अमन चैन रहेगा| प्रेमिका नंबर ४ के मैसेज वो बड़े ध्यान से पढता है| फिर यह भी देखता है की उसने ३ बार फ़ोन किया था| उसे इस बात का संतोष होता है की रेल अभी पटरी पर ही है| इस कृत्रिम प्रेम के बीच माँ का निश्छल प्रेम कहीं ग़ुम हो जाता है|
पहली क्लास तो वैसे भी निकल चुकी है, अब हड़बड़ी मचने से कोई फायदा नहीं है| ऐसा सोच कर वो बसी मुंह अपना लैपटॉप ऑन करता है| लैपटॉप पर प्रेमिका नंबर ४ और उसकी एक अन्तरंग तस्वीर लगी है, कल वो घर आई थी इसीलिए ऐसा करना जरूरी था| जिस तरह मौसम की हिसाब से कपडे बदल दिये जाते हैं उसी तरह प्रेमिकाओं की वजह से तसवीरें बदल दी जाती हैं| सबसे पहले उसने
'G-TALK' खोला और ये देखने लगा की प्रेमिका नंबर ३ ऑनलाइन है या नहीं| सौभाग्य से वो ऑनलाइन नहीं है| उसे ख़ुशी होती है की वो किसी भी लड़की से बातें कर सकता है| संभावित प्रेमिका नंबर ५ ऑनलाइन है, वो उसे रिझाने में अपनी पूरी मेहनत लगाने लगता है| इस बीच रह रह कर 'शकीरा', 'शीला की जवानी' और 'मुन्नी बदनाम' आदि गाने बजाये जा रहे हैं|

समय: सुबह १२:३० बजे
संभावित प्रेमिका को दोस्तों के साथ ब्यूटी पार्लर जाना है, अतः वो ऑफलाइन चली गयी है| भूख भी लग रही है, अब लड़के के पास कॉलेज जाने के सिवा और कोई चारा नहीं है| नहाना क्यूंकि माडर्न युवाओं की पहचान नहीं है, अतः उसमें वक़्त ज़ाया करना बेवकूफी है, ऐसा मान कर उसने तीन दिन पुरानी शर्ट फिरे से पहन ली है| कुल्हाड़ी वाला सैंट जिसकी खुशबू की लड़कियां दीवानी हैं, अपने ऊपर प्रचुर मात्र में छिड़क कर वो कॉलेज के लिए निकल पड़ता है| इस बीच माताजी को चिंता होती है की उसने खाना खाया है या नहीं सो वो अपनी तस्सल्ली के लिए फ़ोन करती हैं| यह फ़ोन कॉल बड़ी मुश्किल से १मिन. चलता है| इस फ़ोन से दो फायदे हुए हैं| एक तो इसे याद आ गया है की प्रेमिका नंबर २ से प्यार जताने के लिए ये पूछना जरूरी है की उसने खाना खाया या नहीं, दूसरा खाने की बात से ये भी स्मरण हो आया है की घर का दंतमंजन ख़त्म हुए ३ दिन हो गए हैं, मतलब उसने आज भी ब्रुश नहीं किया है| रास्ते में वो ३-४ मुखवास निगल लेता है|

समय: रात ९:३० बजे
आज घर जल्दी आ जाने की वजह से बोरियत हो रही है| बोरियत ख़त्म करने के लिए वो सभी प्रेमिकाओं को 'मैं सिर्फ और सिर्फ तुम्हारा हूँ' ऐसा मैसेज भेजता है| मैसेज भेजते ही प्रेमिका नंबर ४ का फ़ोन आ जाता है| कल रात जो भी हुआ अच्छा नहीं हुआ उसे ऐसा महसूस होने लगा है| अकेले उसका जी मचल रहा है इसीलिए वो अभी के अभी घर आ रही है|
आज प्रेमिका नंबर २ से रात में बात करने का वादा पहले ही किया जा चूका है| वो किसी तरह प्रेमिका को फ़ोन पर ही समझा कर टालता है| इसी बीच कई बार प्रेमिका नंबर १ फ़ोन कराती है| कॉल वेटिंग पर थी इसीलिए वो शक करेगी, झूठ बोलने की तैय्यारी वो पहले की कर लेता है|

समय: सुबह १ बजे
प्रेमिका नंबर २ को पढाई और मानसिक एकाग्रता का महत्व समझा कर बड़ी मेहनत से सुलाया गया है| जब वो फ़ोन पर था उस वक़्त बहुत से लोगों ने उसे फ़ोन और मैसेज किये हैं| बड़ी बहिन का भी फ़ोन आया है| वो दीदी को फ़ोन लगता है| इस महीने के पैसे ख़त्म हो चुके हैं बता कर २००० रुपयों की मांग करता है| दीदी को फ़ोन करने के भी अपने फायदे हैं, अब वो बाकी की ३ प्रेमिकाओं से ये झूठ बोल सकता है की वो इतनी देर से दीदी से ही बात कर रहा था| वो सारे लोगों को शुभ रात्रि सन्देश भेज कर लैपटॉप ऑन कर लेता है| सन्देश पाते ही प्रेमिका नंबर ३ प्रफुल्लित हो जाती है और झट से फ़ोन लगाती है| यह फिर से फ़ोन पर चिपक गया है| बीच- बीच में 'facebook ' और 'orkut ' पर अन्य लड़कियों की तसवीरें भी निहार रहा है|

समय: सुबह ३ बजे
प्रेमिका नंबर १ के भाई के जग जाने के कारण प्रेम का अनायास ही अंत हो जाता है| इसका मन अब ललच रहा है| छुधा शांति के लिए ये एक नीली फिल्म देख डालता है| अंग अंग में गर्मी होने के कारण अब आँखों में जलन होने लगी है| मतलब सोने का समय आ गया है|

समय: सुबह ४ बजे
'मैं सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी ही यादें ले कर सो रहा हूँ ताकि सपने में तुम मेरी बाहों में समां जाओ|' इस प्रकार का अति स्नेहपूर्ण मैसेज चारों प्रेमिकाओं और संभावित प्रेमिका को भेज कर उसने खुद को नींद के हवाले कर दिया है|

Wednesday, February 9, 2011

कुछ हट कर

मेरे साथ आज कल चीज़ें कुछ सही नहीं हो रहीं| मेरे आस पास रोज कुछ ना कुछ ऐसा हो रहा है जो मुझे असहज बना देता है| कुछ ३ दिन पहले मैंने अदम गोंडवी की कविता पढ़ी जिसकी पंक्तियाँ कुछ इस तरह हैं:
जिसके हाथों में छाले पैरों में बिवाई है,
उसी
की मेहनत से रौनक आपके बंगलों में आई है|
कितनी
महंगी है रोटी इस देश में,
ये
वो औरत बताएगी जिसने अपना जिस्म बेच कर ये कीमत चुकाई है|

कल रात जब मैं घर लौट रहा था तो मैं उस दुकान पर गया जहाँ मेरे दोस्त काफी पीने जाते हैं, और एक कप काफी के १०० रुपये दे आते हैं| उस दुकान के सामने चाकलेटों की नुमाइश लगी होती है, जिससे वो बड़े घर के छोटे-छोटे बच्चों को बरगलाते हैं | कल जो मैंने देखा वो मुझे अच्छा नहीं लगा, मैंने देखा एक छोटी सी बच्ची गुब्बारा हाथ में लिए वहां रो रही थी| उसके पिता ने चाकलेट दिलाने से इनकार कर दिया था| उसके पिता को देख कर ऐसा जान पड़ता था की उसकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है| यूँ तो मुझे कोई अधिकार नहीं है की मैं उसके चेहरे की हताशा या उसकी वेशभूषा देख कर यह मत बना सकूँ की उसकी आर्थिक स्थिति क्या है| पर एक मानवीय स्तर पर सोचने के बाद मैं ये मानाने पर मजबूर था| एक मजबूर बाप के आलावा कौन है जो चंद पैसे खर्च कर अपने बच्चे की ख़ुशी नहीं खरीदना चाहेगा?
मुझे यह सब देख कर अच्छा नहीं लगा| और एक अच्छे भारतीय की तरह कुछ करने के बजाये मैंने उस घटनास्थल से ही मुह मोड़ लिया। मुझे मालूम नहीं था की घर पर अगला हमला मेरा पहले से ही इंतज़ार कर रहा था| आज कल मैं बासी अख़बार पढने लगा हूँ| दिल्ली में छपने वाला THE HINDU शाम ६ बजे भोपाल पहुँच जाता है| कल का अख़बार खोलते ही पहली तस्वीर ने ही मेरा मन विचलित कर दिया। आगे जब पूरी खबर पढ़ी तो मुझे और बुरा लगा।


राजपुरुषों को रिझाया जा रहा है, राग दरबारी सुनाया जा रहा है|
बद्ज़ुबानो चुप हो जाओ दिल्ली शहर में, यहाँ उत्सव मनाया जा रहा है|

Tuesday, February 8, 2011

एक सरकारी कार्यालय का घीसा पिटा वृतांत -2

मैंने रात को पूरा वृतांत गुरुदेव को सुनाया| गुरुदेव के मुख पे बनावटी मुस्कान थी वैसी ही जैसी की श्री श्री रविशंकर के पोस्टरों में दिखती है| मैं समझ गया था की गुरुदेव अवश्य ही कोई ज्ञान देने वाले हैं| उन्होंने कहा - तुम्हारी गलती नहीं है| गलती साला इस कलियुग की है| सोसाइटी में फरक है| नहीं तो अभिमन्यु को देखो माँ के पेट से ही सब सीख कर आया था| यह सब सुन कर मैं थोडा निराश हो गया| मेरा लटका हुआ चेहरा देख कर उन्हें पता नहीं जोश आया या तरस आ गया - उन्होंने कहा चिंता मत करो एक सप्ताह में तुम्हारा अपना इन्टरनेट होगा| अब अगला लेख उसी से प्रकाशित करना|

सोमवार के दिन मैं गुरुदेव के साथ ११ बजे BSNL के ऑफिस पहुँच गया| मिश्रा जी चाय वाले की दुकान से सटी हुई दीवार पर जहाँ लिखा था - देखो गधा का बच्चा मूत रहा है| वहां खड़े कुछ विसर्जित कर रहे थे| मैंने हाथ के इशारे से बताया की वही मिश्रा जी हैं| गुरुदेव ने मुझे बैज्यनाथ समझ कर फॉर्म मेरे हाथ में थमा दिया और खुद रावण की तरह मिश्रा जी की ओर बढ़ चले| अपने दोनों टांगों के बीच ३० डिग्री का कोण बना कर वो भी कुछ विसर्जित करने लगे| मैंने भी वैज्यनाथ की तरह फॉर्म पाकेट में रख लिया| थोड़ी देर बाद मैंने देखा की दोनों मुड़े, हाथ मिलाया या यूँ कहें की अपने हाथ का मैल दुसरे के हाथ में पोंछा और चाय वाले की दुकान की तरफ बढ़ गए| गुरुदेव ने मुझे भी आने का इशारा किया| मैं शांति से उनके बगल में जा कर बैठ गया| गुरुदेव ने दो सिगरेट सुलगाई, एक मिश्रा जी को दे दी दूसरी खुद पीने लगे| दो तीन कश लगाने के बाद मुझसे फॉर्म माँगा| वो फॉर्म उन्होंने मिश्रा जी को दे दिया और बोले - प्लेसमेंट का टाइम है, लड़का बड़ा परेशान था| मिश्रा जी ने भी चेहरे पर जितना हो सकता था उतनी नकली मुस्कान दिखा कर कहा - होइए जायेगा इ सब में टैम थोड़े लगता है| बाबु से तो हम पाहिले ही पूछे थे| लेकिन अभी लड़का हैं ना| गुरुदेव ने स्नेह से मेरी पीठ थपथपाई और बोले टेंशन मत लेना अब मिश्रा जी सब करवा देंगे| मिश्रा जी ने आखरी कश जोर से खींचा और अन्दर चले गए|

मुझे अचम्भा हुआ| मैंने गुरुदेव से कहा चलिए अन्दर चलते हैं मिश्रा जी तो फॉर्म ले कर चले गए| गुरुदेव ने अपने चेहरे पर क्रोध रस का सा भाव दिखा कर कहा - चुपचाप बैठे रहो बहुत फैंटम बनते हो तुम| मैं मन मार कर बैठा रहा| थोड़ी देर के बाद मिश्रा जी ने गुरुदेव को हाथ के इशारे से अन्दर बुलाया| हम दोनों उठ कर दरवाजे तक गए| मिश्रा जी बड़े नम्र भाव से बोले - बड़े बाबू का मूड सही है| अन्दर बुला रहे हैं| गुरुदेव ने धीरे से १० का नोट मिश्रा जी की गन्दी शर्ट के जेब में डाल दिया| फिर हम सीधा बड़े बाबू के केबिन के बाहर पहुँच कर रुके| उन्होंने एक बार ध्यान से बाहर लटकी हुई तखत पे बड़े बाबु का नाम पढ़ा - उमाकांत सहाय| फिर दरवाजा बिना खटखटाए धड़ल्ले से अन्दर घुस गए| अन्दर जाते ही बोले -" लड़का आने में डर रहा था| कह रहा था बड़े बाबू काम में बिजी होंगे| मैंने कहा सहाय जी हैं मतलब आपने तरफ के ही होंगे| बुरा थोड़े ना मानेंगे|" फिर कुर्सी की तरफ इशारा कर मुझसे बोले आओ बैठो जैसे दफ्तर के बड़े बाबू वही हों| "फ़ाइनल इयर है सर, कम्प्यूटर साईंस कर रहा है| प्लेसमेंट का टाइम आ गया है ना| बहुत जरूरी है इन्टरनेट; वे बिना रुके एक ही सांस में ये सब बोल गए| मुझे अब असहज महसूस हो रहा था, मैंने कभी भी इंजीनियरिंग के छात्रों की तरह खुद को भेड़ बकरियों की गिनती में शुमार करना पसंद नहीं किया| खैर मैं खून का घूँट पी कर रह गया|
सहाय जी के पास शायद ऐसे लोग आते रहते थे सो उन्हें कोई अचम्भा या असहजता नहीं हुई| उल्टा उन्होंने सवाल दाग दिया- किस कॉलेज में है? मेरा कलेजा मुह को आ गया| मुझे लगा की अब हमारा झूठ पकड़ा जायेगा| लेकिन गुरुदेव ने मोर्चा संभाल लिया बोले "RKDF में है सर, वैसे भी आज कल कॉलेज से क्या फरक पड़ता है| सबका तो एक जैसा हाल है| एजुकेसन को तो सब धंधा बना दिया है|" सहाय जी ने एक असहाय सी मुस्कान अपने चेहरे पर बिखेर दी फिर थोडा रुक कर बोले - मिश्रा जी बता रहे थे की उधर लाइन नहीं गयी है| अरे वो तो एयरटेल वालों की नहीं गयी है, BSNL की तो होगी ही - गुरुदेव ने कहा और ठीक वैसी ही एक मुस्कान चिपका दी जैसी की बड़े बाबू ने थोड़ी देर पहले अपने चेहरे पर चिपकाई थी| थोड़े अनमनस्क भाव से सहायजी ने कहा ठीक है कल लाइमैन को भेज कर चेक करवा देते हैं| लेकिन गुरुदेव ने अपनी गुरेज़ नहीं छोड़ी बोले - अरे ये सब चेक वेक का काम तो CBI करती है| आप तो किसी आदमी को भेज दीजिये जो कनेक्शन लगा जाए| बड़े बाबू मुंह बना कर बोले - ठीक है बाहर सीताराम है उसको ले कर चले जाइये टेस्ट कर आएगा|
गुरुदेव ने एक अद्वितीय मुस्कान के साथ बड़े बाबू की तरफ हाथ बढाया| और बड़े बाबू ने भी इस बार उसी प्रेम से हाथ मिलाया| इन सब के बीच गुरुदेव ने जादू भी दिखाया| मुझे नहीं पता था की गुरुदेव को जादू भी आता है| उन्होंने जो हाथ बड़े बाबू की तरफ बढाया था उसमें १०० का नोट था| हाथ मिलाने के बाद नोट गायब हो गया था| मैं मुफ्त में जादू का खेल देख कर बड़ा खुश हुआ|

बहार आते ही हमने देखा की मिश्राजी दरवाजे के पास ही कान लगाये खड़े थे| बिना कुछ पूछे उन्होंने हमें सीताराम कहाँ मिलेगा बता दिया| गुरुदेव जिस तरह सीताराम से मिले और आगे जो घटना हुई| वो राष्ट्रकवि की पंक्तियों द्वारा बेहतर समझी जा सकती है -

हरि बड़े प्रेम से कर धर कर,ले चढ़े उसे अपने रथ पर

रथ चला परस्पर बात चली,शम-दम की टेढी घात चली

सीताराम को रास्ते में समोसे खिलाये गए और वहीं तय हो गया की हमारे घर तक लाइन गयी है| फिर उसने हेडऑफिस फ़ोन करके ये भी बता दिया की वहां फ़ोन शाम तक लग जाना चाहिए|

शाम को दो-तीन छिछोरे जैसे दिखने वाले लड़के हमारे घर आये और गुटका चबाते-चबाते एक नया फ़ोन लगा कर चले गए| गुरुदेव ने मुझे पहले ही आगाह कर रखा था की उन्हें ५० का नोट देना है| मैंने वैसा ही किया| अब इंतज़ार है तो बस इन्टरनेट आने का| जिसका वादा वो ५० का नोट लेने के बाद कर के गए हैं|

Sunday, February 6, 2011

एक सरकारी कार्यालय का घीसा पिटा वृतांत

भारत में दो कार्यप्रणालियाँ कार्यरत हैं| एक है सरकारी कार्य पद्धति और दूसरी है आम कार्य प्रणाली| क्यूंकि ख़ास चीज़ें चुन कर लायी जाती हैं और भारत सरकार चुनी जाती है अतः सरकार ख़ास हो जाती है| फिर सरकार को आम चीज़ें कैसे पसंद आएँगी| अतैव सरकार को आम कार्य पद्धति रास नहीं आती और भारत में काम का सरकारी तरीका इतना ख़ास है की किसी भी को काम सरकारी तरीके से अंजाम नहीं दिया जा सकता| इन दोनों पद्धतियों में तालमेल रहे और काम सुचारू रूप से हो सके इसलिए भारत में दो तरह की संस्थाएं भी हैं कार्यरत हैं सरकारी और गैर सरकारी|

तो हुआ कुछ यूँ की मैं पिछले दिनों इन्टरनेट सुविधा के लिए एक सरकारी दफ्तर चला गया| यानि की मैं बीएसएनएल(भारत संचार निगम लिमिटेड BSNL) के कार्यालय सुबह तडके ही पहुच गया| दफ्तर के आगे ताला लगा था| मैंने अपनी घडी का मुखड़ा देखा| मेरी घडी ने मुझे गाली दी - मूर्ख ये भी कोई समय है सरकारी दफ्तर आने का? तू बेरोजगार है इसका ये मतलब तो नहीं की बड़े बाबु के पास भी कोई काम नहीं है| उनको बड़े बेटे को स्कूल छोड़ना है| लेखा विभाग की मैडम की सास ने आज फिर झगडा किया है| वो अपने सास की गालियों का जवाब दे कर ही आएँगी| छोटे बाबु की साली आने वाली है, उनको स्टेशन से लाने गए हैं| मुझे खुद पर ग्लानी हुई| मैं सामने की चाय वाली दुकान पर चला गया| भारतीय आत्मीयता पर मुझे पूरा भरोसा और अभिमान है| वहां एक अधेढ़ उम्र का आदमी पहले से बैठा था, मैं उसी के बगल में टिक लिया| मुझे पता था की वक़्त काटना अब ज्यादा मुश्किल नहीं होगा|

चाय की आखिरी चुस्की लेते हुए उसने मुझसे पुछा - BSNL के ओफ्फिस आये थे का? मैंने हाँ में सर हिला दिया| उसने कप निचे रखा और राजश्री गुटके का पाकेट ठीक उसी तरह फाड़ कर मुह में डाला जैसा की प्रचार में नहीं दिखाते हैं| असल में मैंने किसी व्यक्ति को वैसे गुटका खाते देखा ही नहीं है जैसा की प्रचार में दिखाते हैं| गुटका और पान सुपारी के प्रचार में बताते हैं की एक एक दाना चुन कर डाला गया है और हर दाना खुशबूदार और पौष्टिक चीज़ों से परिपूर्ण है, जबकि खाने वाले को देख कर ऐसा लगता ही नहीं है की वो इतनी मेहनत से तैयार की गयी चीज़ खा रहा है| सारे गुटका खाने वाले बड़े एहसान फरामोश होते हैं| क्यूंकि प्रचार वाले गलत चीज़ तो दिखायेंगे नहीं, इतना पैसा लगता है एक प्रचार बनाने में| कोई क्यूँ इतना पैसा लगा कर झूठ बोलेगा| मैं इसी उधेड़बुन में लगा हुआ था की उस एहसान फरामोश इंसान ने दूसरा सवाल दागा - इन्टनेट लगवाना है क्या?
मैं - हाँ|
आदमी - तो एयरटेल के ओफ्फिस चले जाना था| यहीं पासे में हैगा|
मैं- नहीं उनकी लाइन वहां तक नहीं गयी है|
आदमी - वही तो कहें| नहीं तो कौन साला BSNL को पूछता हैगा| (थोडा रुक कर) प्लेसमेंट का टैम आ गया है ना, जरूरत होगा| कौन कॉलेज में हैं?
मैं - नहीं मैं कॉलेज में नहीं हूँ|
मैं खुद को आने वाले यक्ष प्रश्नों के लिए तैयार कर रहा था लेकिन तभी एक हेलमेट धारी व्यक्ति हमारे सामने आया| वो मेरे बगल में बैठे आदमी से मुखातिब हो कर बोला| कब आये मिश्रा जी?
मिश्रा जी - बस बाबु अभिये आये| खोल दें का?
बाबु - हाँ चलिए वहीँ चाय माँगा लेंगे| आज सब निपटारा करना है, बड़ा बाबु पाहिले ही टिल्लों टिल्लों शुरू कर दिये हैं|

मिश्रा जी अपनी जगह से उठे. पीक की एक पिचकारी जो की मेरे पैर के बस थोड़े ही ऊपर से हो का गुजरी, सीधा निशाने पर गयी| बिलकुल वहीँ जहाँ लिखा था - यहाँ थूकना मना है| जिस जगह यह अनर्थकारी वाक्य लिखा था वो पहले ही पान और गुटके की पीक से लाल हो चुकी थी| मिश्रा जी बाबु के साथ दफ्तर के दरवाज़े तक गए, बड़ी सहजता से चाबियों का एक गुच्छा निकला और ताले में एक चाभी घुसेड दी| ताला देख कर की बहुत पुराना और 'made in aligarh 12 lever strong' होने का सबूत दे रहा था| मिश्रा जी ने थोडा और जोर लगाया, दरवाज़े को दो चार गालियाँ दी और फिर जोर से धक्का दिया| BSNL का दफ्तर ठीक ११:१५ पर खुल चूका था| मैं मिश्रा जी को देख कर भाव विभोर हो उठा| सच कहते हैं संसार में अच्छे लोगों की कद्र नहीं है| इस इंसान को तो RAW में होना चाहिए था| मेरे बगल में इतनी देर बैठा बात करता रहा, मुझे एयरटेल ऑफिस का पता भी बता दिया लेकिन ये कभी पता नहीं चलने दिया की वो उसी दफ्तार का मुलाजिम है और चाभियाँ उसी के पास हैं| उलटे दफ्तर वालों को एक दो बार गाली भी दे दी|

समोसे के साथ जो चटनी मिली थी उसकी दो बूँदें जो कटोरी में बाकी रह गयीं थी वो चाट कर मैं उनके पीछे हो लिया| अन्दर जा कर मैंने वही पुरानी आत्मीयता दिखा कर मिश्रा जी से कहा - एक फॉर्म दे दीजिये|
मिश्रा जी ने निर्विकार भाव से पुछा - कौन बात का फारम?
मैं समझ गया की व्यक्ति अब सरकारी दफ्तर में प्रवेश कर चूका है| अब वो सरकारी हो चूका है और मैं एक आम आदमी हूँ| मैंने मन ही मन कहा धन्य हो मिश्रा जी की कर्त्तव्यपरायणता| मैंने भी निर्विकार भाव से कहा - नया इन्टरनेट कनेक्शन लेना है उसका फॉर्म|
मिश्रा जी- नया कनेक्शन मैडम देती हैं| अभी आई नहीं हैं| थोडा देर बैठिये|
मैं बैठा शांति से बैठ कर दिवार पर चिपके इश्तेहार और सूचनाएं पढता रहा| एक जगह लिखा था कस्टमर वेटिंग एरिया - उसके निचे एक धुल-धूसरित कुर्सी पड़ी थी जिसका एक पाया टूटा हुआ था| मैंने सोचा १००-२०० साल के बाद जब खुदाई में इस दफ्तर के अवशेष मिलेंगे तो कोई इतिहासकार लिखेगा - भारतीय शैली के कार्यालयों में ऐसी कुर्सियां पाई जाती थीं| इनकी उत्पत्ति के समय का कोई ज्ञान नहीं है| ऐसी कुर्सियां ख़ास तौर पर आम लोगों के लिए रखी जाती थीं, ताकि वो बैठ ना सकें|
इसी बीच अदम गोंडवी की एक कविता की कुछ पंक्तियाँ याद आयीं -
"मुक्तकामी चेतना अभ्यर्थना इतिहास की,
ये समझदारों की दुनिया है विरोधाभास की|
जिसे कहते हो तुम इस देश का स्वर्णिम अतीत,
वो कहानी है महज प्रतिशोध की संत्रास की|"
अदम जी को याद करके मेरे अन्दर का दर्शनशाश्त्री अब कुलांचे मारने लगा था, इसी तरह मैंने आधा घंटा काट दिया था, तभी एक अधेड़ उम्र की महिला कुछ ३-४ बड़े थैले लिए अन्दर आई और मेरे टेबल के सामने आ कर उन्हें पटक दिया| मैं समझ गया की लेखा मैडम आ गयीं हैं और उनका मूड कुछ सही नहीं है| तो मैंने भी अपने दर्शन को धोबी पछाड़ मारा और जितना हो सकता था दुखी हो कर बोला - मैडम एक फॉर्म दे दीजिये, नया ब्रॉडबैंड लगवाना है| कुछ देर तक अपना वो अपना सारा सामान सजाती रहीं| फिर उन्होंने बाल बनाने शुरू किये और जोर से आवाज़ लगायी मिश्र जी देखिये क्या मांग रहे हैं| उनके बोलने के लहजे से मुझे लगा की मैंने किसी गलत चीज़ की मांग कर दी है| जब छिछोरे लड़के बस या ट्रेन में लड़कियों से पप्पी की मांग कर देते हैं तो लड़कियां अपने तथाकथित भाइयों को ऐसे ही बताती हैं - दोखो ना भैया क्या मांग रहा है| मिश्रा जी फिर से मेरे पास आये और उसी अनमनस्क भाव से बोले का चाहिए सर? मैंने भी उसी निर्विकार भाव से अपनी बात दुहरा दी| इस बार उन्होंने ना नहीं की| वो गए और नीला सा फॉर्म ला कर मेरे सामने पटक दिया| मैडम के सामने एक गिलास पानी लाये और उसको पटका नहीं प्यार से रख दिया| उनके पानी पीने तक मैंने फॉर्म पूरा भर लिया था, उनका चेहरा भी अब कुछ शांत हो चला था| मैंने थोड़ी देर इंतज़ार किया फिर उनसे पुछा इसे जमा कहाँ करना है? मैडम ने हलकी से मुस्कान दी और मेरे हाथ से फॉर्म ले लिया| फॉर्म पढ़ कर बोलीं दाना पानी के पास रहते हो? मैंने कहा हाँ| वहां तो एयरटेल की लाइन ही नहीं गयी है| मेरी समझ में नहीं आ रहा था की आखिर BSNL और एयरटेल के बीच ऐसा कैसा प्रेम है की BSNL के ऑफिस वाले भी एयरटेल का कनेक्शन लगवाने को बोलते हैं| फिर उन्होंने बताया की उनकी एक ननद भी वहीं पास में होशंगाबाद लिंक रोड पे रहती हैं| उसके बाद उन्होंने मुझे बताया की कैसे उनकी ननद उन्हें परेशान करती हैं और कैसे आज सुबह ही उनकी अपनी जेठानी से लड़ाई हो गयी है| ये वार्ता इतनी लम्बी चल जाएगी मुझे पता नहीं था| मुझे अब समझ आया की सुन्दरकाण्ड में जब हनुमान जी कहते हैं -
तब तव बदन पैठहउँ आई ।
सत्य कहउँ मोहि जान दे माई ॥
तो उनका भाव क्या था| लेकिन प्रभु का नाम याद करते ही चमत्कार हुआ| इन माई की बुद्धि का विकास हुआ और वो अचानक से चुप हो गयी| उन्होंने कहा आप जाइये और ये फॉर्म बड़े बाबु को दे दीजिये| मैंने राहत की सांस ली| फिर मुझे याद आया की बड़े बाबू तो अभी तक आये ही हैं हैं| १२:३० हो गए थे और अब मेरा मन नहीं हो रहा था की मैं वहां रुक कर और तमाशा देखूं| तो मैंने निश्चय किया की कल फिर आ जाऊंगा| जैसे ही मैं बहार निकला मैंने देखा की मिश्रा जी फिर उसी दुकान पे बैठे हैं| फर्क ये था की इस बार वो चाय नहीं बीडी पी रहे थे| चूँकि इस बार वे ऑफिस के बाहर थे तो उन्होंने फिर उसी आत्मीयता का उदहारण प्रस्तुत किया| मुझे हाथ के इशारे से बगल में बुलाया| मैं ज्यादा देर करने के मूड में नहीं था सो मैंने कहा - बड़े बाबू तो आये नहीं हैं| कल आ कर फॉर्म दे दूंगा|
मिश्रा जी ने हसते हुए मेरी तरफ देखा उनकी आँखें जैसे मेरा उपहास कर रहीं हो| बोल रही हों की अभी तू बच्चा है| तुझे क्या पता की बड़े बाबु कितनी बड़ी चीज़ हैं| फिर मुझसे बोले - ठीक है चलिए फिर मुलाकात होगी|

अगले दिन मैं घर से ही १२ बजे निकला| मैं खुद को सरकारी तरीके में रंगने की कोशिश कर रहा था| जब तक मैं ऑफिस पंहुचा मुझे १ बज चुके थे| मैंने जाते ही मिश्रा जी से पुछा बड़े बाबु आये हैं की नहीं? मिश्रा जी ने कहा - हाँ आये तो हैं| लेकिन अब फारम लेंगे नहीं| सनीवार है ना| नया आवेदन बस १२ बजे तक लेते हैं| और वईसे भी अब तो ओफ्फ़िस बंद करने का टैम हो गया है ना| मैंने सर पीट लिया| मेरे समझ में आ गया था की मैं सरकारी चक्रव्यूह में फस गया हूँ, अब गुरुदेव की सहायता लेनी पड़ेगी|
सोमवार को वापिस आने का फैसला कर के मैं चला गया|



क्रमशः -