Tuesday, July 26, 2011

दो खबरें

बड़े दिनों से ऑफिस नहीं गया था सो इन्टरनेट नहीं मिल पाया था| ब्लॉग लिखने का शगल तभी तक अच्छा लगता है, जब तक मुफ्त की रोटियाँ और मुफ्त का इन्टरनेट मिलता है| पिछले महीने ऐसी मुफ्तखोरी का कोई संयोग ही नहीं बन पाया, तो ब्लॉग भी बिचारा अपडेट नहीं हो पाया| अभी मेरी एक मित्राणी ने इस बात का ख्याल दिलाया| और जैसे ही इन्टरनेट हाथ लगा, मेरे अन्दर का सोया हुआ (देश का प्रतिभाशाली) लेखक जाग गया|

अब मुद्दे पर आता हूँ| गए दिनों अखबार में दो खबरें पढ़ कर बड़ा रस मिला| पहली खबर थी की पत्रकारों ने अपनी सुरक्षा के लिए नए और सख्त कानून की मांग की है| अपनी कौम के लोगों ने ऐसी आवाज़ बुलंद की है पढ़ कर अच्छा लगा| ये कुत्तों का स्वाभाव होता है, एक को भौंकता देख कर सब भौंकते हैं| हम भी उस दिन खूब भौंके| लगा जैसे हमारी ही सुरक्षा बढ़ने वाली है| सरकार हर पत्रकार को z+सिक्यूरिटी दे देगी| फिर हम गली के नेता से बड़े हो जायेंगे, हमारे आगे-पीछे भी बंदूकधारी घूमेंगे| अपने गली में सबसे बड़ा बनाना भी हर कुत्ते की ख्वाहिश होती है| लेकिन अगली खबर पढ़ कर दिल फिर छोटा हो गया| सर्वोच्च न्यायलय के दो न्यायधीशों ने 2G फ़ोन मामले की सुनवाई से अपने हाथ खिंच लिए| उनका कहना था की उनकी जान को खतरा हो सकता है|

z+ सिक्यूरिटी में घूमने का सारा प्लान धरा का धरा ही रह गया| जब इस देश के न्यायधीश, अपने लिए कुछ नहीं करवा पा रहे हैं तो पत्रकार ही भला क्या कर लेंगे

वैसे देखा जाये हो अपने देश में पत्रकारों को कई खतरे हैं| सबसे बड़ा खतरा है नौकरी का| हंसी के फव्वारे और राशि फल दिखा कर कब तक काम चलाएंगे| पत्रकारिता तो सबने बरसों पहले ही छोड़ दी है| फिर आज कल तो प्रचार वालों ने अपना 24x7 चैनेल खोल लिया है| जब चैनेल ही नहीं होगा तो ये हमारे नामी गिरामी पत्रकार क्या करेंगे?

फिर याद आया की बहुत पहले एक शब्द हुआ करता था - शर्म| ब्लू फिल्म की अभिनेत्री के कपड़ों की तरह धीरे-धीरे ये देश से गायब हो गया है| ना तो देश के न्यायाधीशों को शर्म आई ना नए कानून की मांग करते हुए पत्रकारों को|