Tuesday, February 8, 2011

एक सरकारी कार्यालय का घीसा पिटा वृतांत -2

मैंने रात को पूरा वृतांत गुरुदेव को सुनाया| गुरुदेव के मुख पे बनावटी मुस्कान थी वैसी ही जैसी की श्री श्री रविशंकर के पोस्टरों में दिखती है| मैं समझ गया था की गुरुदेव अवश्य ही कोई ज्ञान देने वाले हैं| उन्होंने कहा - तुम्हारी गलती नहीं है| गलती साला इस कलियुग की है| सोसाइटी में फरक है| नहीं तो अभिमन्यु को देखो माँ के पेट से ही सब सीख कर आया था| यह सब सुन कर मैं थोडा निराश हो गया| मेरा लटका हुआ चेहरा देख कर उन्हें पता नहीं जोश आया या तरस आ गया - उन्होंने कहा चिंता मत करो एक सप्ताह में तुम्हारा अपना इन्टरनेट होगा| अब अगला लेख उसी से प्रकाशित करना|

सोमवार के दिन मैं गुरुदेव के साथ ११ बजे BSNL के ऑफिस पहुँच गया| मिश्रा जी चाय वाले की दुकान से सटी हुई दीवार पर जहाँ लिखा था - देखो गधा का बच्चा मूत रहा है| वहां खड़े कुछ विसर्जित कर रहे थे| मैंने हाथ के इशारे से बताया की वही मिश्रा जी हैं| गुरुदेव ने मुझे बैज्यनाथ समझ कर फॉर्म मेरे हाथ में थमा दिया और खुद रावण की तरह मिश्रा जी की ओर बढ़ चले| अपने दोनों टांगों के बीच ३० डिग्री का कोण बना कर वो भी कुछ विसर्जित करने लगे| मैंने भी वैज्यनाथ की तरह फॉर्म पाकेट में रख लिया| थोड़ी देर बाद मैंने देखा की दोनों मुड़े, हाथ मिलाया या यूँ कहें की अपने हाथ का मैल दुसरे के हाथ में पोंछा और चाय वाले की दुकान की तरफ बढ़ गए| गुरुदेव ने मुझे भी आने का इशारा किया| मैं शांति से उनके बगल में जा कर बैठ गया| गुरुदेव ने दो सिगरेट सुलगाई, एक मिश्रा जी को दे दी दूसरी खुद पीने लगे| दो तीन कश लगाने के बाद मुझसे फॉर्म माँगा| वो फॉर्म उन्होंने मिश्रा जी को दे दिया और बोले - प्लेसमेंट का टाइम है, लड़का बड़ा परेशान था| मिश्रा जी ने भी चेहरे पर जितना हो सकता था उतनी नकली मुस्कान दिखा कर कहा - होइए जायेगा इ सब में टैम थोड़े लगता है| बाबु से तो हम पाहिले ही पूछे थे| लेकिन अभी लड़का हैं ना| गुरुदेव ने स्नेह से मेरी पीठ थपथपाई और बोले टेंशन मत लेना अब मिश्रा जी सब करवा देंगे| मिश्रा जी ने आखरी कश जोर से खींचा और अन्दर चले गए|

मुझे अचम्भा हुआ| मैंने गुरुदेव से कहा चलिए अन्दर चलते हैं मिश्रा जी तो फॉर्म ले कर चले गए| गुरुदेव ने अपने चेहरे पर क्रोध रस का सा भाव दिखा कर कहा - चुपचाप बैठे रहो बहुत फैंटम बनते हो तुम| मैं मन मार कर बैठा रहा| थोड़ी देर के बाद मिश्रा जी ने गुरुदेव को हाथ के इशारे से अन्दर बुलाया| हम दोनों उठ कर दरवाजे तक गए| मिश्रा जी बड़े नम्र भाव से बोले - बड़े बाबू का मूड सही है| अन्दर बुला रहे हैं| गुरुदेव ने धीरे से १० का नोट मिश्रा जी की गन्दी शर्ट के जेब में डाल दिया| फिर हम सीधा बड़े बाबू के केबिन के बाहर पहुँच कर रुके| उन्होंने एक बार ध्यान से बाहर लटकी हुई तखत पे बड़े बाबु का नाम पढ़ा - उमाकांत सहाय| फिर दरवाजा बिना खटखटाए धड़ल्ले से अन्दर घुस गए| अन्दर जाते ही बोले -" लड़का आने में डर रहा था| कह रहा था बड़े बाबू काम में बिजी होंगे| मैंने कहा सहाय जी हैं मतलब आपने तरफ के ही होंगे| बुरा थोड़े ना मानेंगे|" फिर कुर्सी की तरफ इशारा कर मुझसे बोले आओ बैठो जैसे दफ्तर के बड़े बाबू वही हों| "फ़ाइनल इयर है सर, कम्प्यूटर साईंस कर रहा है| प्लेसमेंट का टाइम आ गया है ना| बहुत जरूरी है इन्टरनेट; वे बिना रुके एक ही सांस में ये सब बोल गए| मुझे अब असहज महसूस हो रहा था, मैंने कभी भी इंजीनियरिंग के छात्रों की तरह खुद को भेड़ बकरियों की गिनती में शुमार करना पसंद नहीं किया| खैर मैं खून का घूँट पी कर रह गया|
सहाय जी के पास शायद ऐसे लोग आते रहते थे सो उन्हें कोई अचम्भा या असहजता नहीं हुई| उल्टा उन्होंने सवाल दाग दिया- किस कॉलेज में है? मेरा कलेजा मुह को आ गया| मुझे लगा की अब हमारा झूठ पकड़ा जायेगा| लेकिन गुरुदेव ने मोर्चा संभाल लिया बोले "RKDF में है सर, वैसे भी आज कल कॉलेज से क्या फरक पड़ता है| सबका तो एक जैसा हाल है| एजुकेसन को तो सब धंधा बना दिया है|" सहाय जी ने एक असहाय सी मुस्कान अपने चेहरे पर बिखेर दी फिर थोडा रुक कर बोले - मिश्रा जी बता रहे थे की उधर लाइन नहीं गयी है| अरे वो तो एयरटेल वालों की नहीं गयी है, BSNL की तो होगी ही - गुरुदेव ने कहा और ठीक वैसी ही एक मुस्कान चिपका दी जैसी की बड़े बाबू ने थोड़ी देर पहले अपने चेहरे पर चिपकाई थी| थोड़े अनमनस्क भाव से सहायजी ने कहा ठीक है कल लाइमैन को भेज कर चेक करवा देते हैं| लेकिन गुरुदेव ने अपनी गुरेज़ नहीं छोड़ी बोले - अरे ये सब चेक वेक का काम तो CBI करती है| आप तो किसी आदमी को भेज दीजिये जो कनेक्शन लगा जाए| बड़े बाबू मुंह बना कर बोले - ठीक है बाहर सीताराम है उसको ले कर चले जाइये टेस्ट कर आएगा|
गुरुदेव ने एक अद्वितीय मुस्कान के साथ बड़े बाबू की तरफ हाथ बढाया| और बड़े बाबू ने भी इस बार उसी प्रेम से हाथ मिलाया| इन सब के बीच गुरुदेव ने जादू भी दिखाया| मुझे नहीं पता था की गुरुदेव को जादू भी आता है| उन्होंने जो हाथ बड़े बाबू की तरफ बढाया था उसमें १०० का नोट था| हाथ मिलाने के बाद नोट गायब हो गया था| मैं मुफ्त में जादू का खेल देख कर बड़ा खुश हुआ|

बहार आते ही हमने देखा की मिश्राजी दरवाजे के पास ही कान लगाये खड़े थे| बिना कुछ पूछे उन्होंने हमें सीताराम कहाँ मिलेगा बता दिया| गुरुदेव जिस तरह सीताराम से मिले और आगे जो घटना हुई| वो राष्ट्रकवि की पंक्तियों द्वारा बेहतर समझी जा सकती है -

हरि बड़े प्रेम से कर धर कर,ले चढ़े उसे अपने रथ पर

रथ चला परस्पर बात चली,शम-दम की टेढी घात चली

सीताराम को रास्ते में समोसे खिलाये गए और वहीं तय हो गया की हमारे घर तक लाइन गयी है| फिर उसने हेडऑफिस फ़ोन करके ये भी बता दिया की वहां फ़ोन शाम तक लग जाना चाहिए|

शाम को दो-तीन छिछोरे जैसे दिखने वाले लड़के हमारे घर आये और गुटका चबाते-चबाते एक नया फ़ोन लगा कर चले गए| गुरुदेव ने मुझे पहले ही आगाह कर रखा था की उन्हें ५० का नोट देना है| मैंने वैसा ही किया| अब इंतज़ार है तो बस इन्टरनेट आने का| जिसका वादा वो ५० का नोट लेने के बाद कर के गए हैं|

1 comment:

  1. http://www.ipaidabribe.com/

    Chahe jo kar le, Gurudev ke tarekon ko hi apna kar chalna padega..

    Ye wali post achi hai.. Pehli wali se..

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