Saturday, March 26, 2011

कलियुग में कबीर

मैंने कबीर का एक दोहा पढ़ लिया था जिसका मतलब मुझे समझ नहीं आ रहा था, सो मैं उस दोहे के साथ गुरुदेव के पास पंहुचा। गुरुदेव उस वक़्त सो रहे थे। मैंने उन्हें जगाया। वो झुंझला कर उठ बैठे और सर खुजाने लगे। फिर कांख खुजाते हुए बोले "क्यूँ बे आज कल बहुते बिजी हो का, मैचो देखने नहीं आये?" मैंने अपनी व्यथा सुनाई। अब तक उनका हाथ पेट पर जा पंहुचा था। वो अपना पेट सहला रहे थे या खुजला रहे थे कहना मुश्किल होगा लेकिन पहले की क्रिया को अगर ध्यान में रखें तो इसे खुजलाना ही कहेंगे।

पांच मिनट तक मैच का ब्यौरा देने के बाद उन्होंने मुझसे दोहा सुनाने को कहा। मैं आनंद-विभोर हो उठा। मैंने उन्हें दोहा सुनाया -

रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।
हीना जन्म अनमोल था, कोड़ी बदले जाय ॥

गुरुदेव ने मेरी तरफ हीनता सूचक नेत्रों से देखा और बोले, "पेपरो नहीं पढ़ते हो का?" मुझे आघात लगा। मैं हर रोज़ दो अख़बार मांगता हूँ। मैंने कहा पढता हूँ गुरुदेव, रोज पढता हूँ। "तब कहे इतना बकलोल जैसा कुएस्चन पूछ रहे हो," गुरुदेव ने कहा। मुझे आत्म-ग्लानी तो हुई पर मैं सुनता रहा।

फिर गुरुदेव ने विस्तार से बताया - "देखो ये जो दोहा है ये 'ए राजा' पे बेस्ड है। कबीर सबको राजा जैसा बनाने की सिख देना चाहते हैं। कबीर बता रहे हैं की आम आदमी रात सो कर गँवा देता है और दिन खाना खा कर। जब की ये जन्म तो प्रभु ने इस लिए दिया है की तुम वैभव संपन्न हो सको। ये जन्म अनमोल है खुद को पैसे कोड़ी से बदल लो तो ही इस जनम की सार्थकता है। रात को सो कर मत गवाओ, रात में दारु पी कर डील करो, दिन को खाना खा कर बर्बाद मत करो घूस खाओ और इसी तरह अपना मानव जन्म सफल बनाओ।"

गुरुदेव का असीम ज्ञान देख कर मुझसे रहा नहीं गया। मैंने जो भी दो-चार दोहे पढ़े थे सबका मतलब पूछने लगा। उन्होंने बड़ी प्रेम से हर दोहे को समझाया, उन दोहों का विवरण कुछ इस प्रकार है:

दान दिए धन ना घते, नदी ने घटे नीर ।
अपनी आँखों देख लो, यों क्या कहे कबीर ॥

इस दोहे से कबीर का आशय सुरेश कलमाड़ी की तरफ है। इस दोहे के माध्यम से कबीर चोर-चोर मौसेरे भाई वाले मुहावरे से जुड़ने की गुहार लगा रहे हैंकबीर का कहना है की पैसे खाओ तो इधर-उधर अपने चोर भाइयों में दान करते जाओ। गुरुदेव का कहना है की दूसरों को दान देने से धन कहाँ चला जाता है इसका पता नहीं चलता, ना ही धन घटता है। सुरेश कलमाड़ी ने हर कंपनी वाले को पैसा खिलाया है। पूरा देश अपनी आँखों से देख रहा है, लेकिन कोई पता नहीं लगा पा रहा है की पैसा कहाँ गया। जब कबीर को भी पता नहीं चल रहा तो सीबीआई को क्या पता चलेगा।

बानी से पह्चानिये, साम चोर की घात ।
अन्दर की करनी से सब, निकले मुँह कई बात ॥

कबीर कहते हैं की समाज को बस आदमी की बोली से मतलब होना चाहिए। इस दोहे से उनका आशय पी जे थोमस की तरफ है। कबीर समझाना चाहते हैं की आदमी ने क्या किया है उससे कोई मतलब नहीं है। अगर उसे बोलना आता है तो वो कुछ भी कर सकता है। बोलते समय आवाज़ हमेशा अन्दर से आनी चाहिए, फिर आप कोर्ट से लड़ कर भी टिके रह सकते हैं। इसीलिए करो कुछ भी पर बोलो वही जिसकी जरूरत हो। जो बताने की जरूरत ना हो उसे पेट के अन्दर छुपा लो, फिर वो बात मुह से नहीं निकल सकती।

बैध मुआ रोगी मुआ, मुआ सकल संसार ।
एक कबीरा ना मुआ, जेहि के राम अधार ॥

ये कबीर वाणी का सबसे महत्त्वपूर्ण दोहा है। इसके दोहे के माध्यम से कबीर मनमोहन सिंह की तरफ इशारा कर रहे हैं। उनका कहना है की देर-सबेर सब पकड़े जा सकते हैं लेकिन जिसके सर पर किसी बड़े आदमी का हाथ हो वो पकड़ा नहीं जा सकता। एक एक करके सब पर आंच आ रही है ए राजा फस गए, जयराम संकट में हैं लेकिन मनमोहन अब भी सेफ हैं। उनके सर पर देवी का हाथ है, इसीलिए उन्हें कुछ नहीं हो सकता। अतः सबको चाहिए की अपने बॉस को पटा कर रखे, अगर आपके ऑफिस में आपका बॉस आपको पसंद करता है तो आप कुछ भी कर सकते हैं।


इतना ज्ञान पा कर मैं ख़ुशी से नाच रहा था और गुरुदेव निर्विकार भाव से अपनी जांघ खुजला रहे थे। इससे पहले की मैं कुछ कहता गुरुदेव का हाथ फिर से पेट पर गया और बोले, "अब जाओ। बाद में आना। प्रेसर बन गया है।" मैं ज्ञान की इस गंगा को अपने साथ लिए वहां से बह निकला।

2 comments:

  1. Ultimate :)

    -Dhiraj

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  2. Shakti, this is really nice.. So well put.. It's like news ki philosophy.. Likha karo yaar..!

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