मैं कुछ नहीं करना चाहता -
वैसे ही जैसे नदी कुछ नहीं करती,
वैसे ही जैसे पेड़ कुछ नहीं करता,
वैसे ही जैसे मेघ कुछ नहीं करते।
कुछ नहीं करना चाहना ही अब मेरा लक्ष्य है,
मैं शून्य को साधना चाहता हूँ।
Tuesday, March 29, 2011
Saturday, March 26, 2011
कलियुग में कबीर
मैंने कबीर का एक दोहा पढ़ लिया था जिसका मतलब मुझे समझ नहीं आ रहा था, सो मैं उस दोहे के साथ गुरुदेव के पास पंहुचा। गुरुदेव उस वक़्त सो रहे थे। मैंने उन्हें जगाया। वो झुंझला कर उठ बैठे और सर खुजाने लगे। फिर कांख खुजाते हुए बोले "क्यूँ बे आज कल बहुते बिजी हो का, मैचो देखने नहीं आये?" मैंने अपनी व्यथा सुनाई। अब तक उनका हाथ पेट पर जा पंहुचा था। वो अपना पेट सहला रहे थे या खुजला रहे थे कहना मुश्किल होगा लेकिन पहले की क्रिया को अगर ध्यान में रखें तो इसे खुजलाना ही कहेंगे।
पांच मिनट तक मैच का ब्यौरा देने के बाद उन्होंने मुझसे दोहा सुनाने को कहा। मैं आनंद-विभोर हो उठा। मैंने उन्हें दोहा सुनाया -
रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।
हीना जन्म अनमोल था, कोड़ी बदले जाय ॥
गुरुदेव ने मेरी तरफ हीनता सूचक नेत्रों से देखा और बोले, "पेपरो नहीं पढ़ते हो का?" मुझे आघात लगा। मैं हर रोज़ दो अख़बार मांगता हूँ। मैंने कहा पढता हूँ गुरुदेव, रोज पढता हूँ। "तब कहे इतना बकलोल जैसा कुएस्चन पूछ रहे हो," गुरुदेव ने कहा। मुझे आत्म-ग्लानी तो हुई पर मैं सुनता रहा।
फिर गुरुदेव ने विस्तार से बताया - "देखो ये जो दोहा है ये 'ए राजा' पे बेस्ड है। कबीर सबको राजा जैसा बनाने की सिख देना चाहते हैं। कबीर बता रहे हैं की आम आदमी रात सो कर गँवा देता है और दिन खाना खा कर। जब की ये जन्म तो प्रभु ने इस लिए दिया है की तुम वैभव संपन्न हो सको। ये जन्म अनमोल है खुद को पैसे कोड़ी से बदल लो तो ही इस जनम की सार्थकता है। रात को सो कर मत गवाओ, रात में दारु पी कर डील करो, दिन को खाना खा कर बर्बाद मत करो घूस खाओ और इसी तरह अपना मानव जन्म सफल बनाओ।"
गुरुदेव का असीम ज्ञान देख कर मुझसे रहा नहीं गया। मैंने जो भी दो-चार दोहे पढ़े थे सबका मतलब पूछने लगा। उन्होंने बड़ी प्रेम से हर दोहे को समझाया, उन दोहों का विवरण कुछ इस प्रकार है:
दान दिए धन ना घते, नदी ने घटे नीर ।
अपनी आँखों देख लो, यों क्या कहे कबीर ॥
इस दोहे से कबीर का आशय सुरेश कलमाड़ी की तरफ है। इस दोहे के माध्यम से कबीर चोर-चोर मौसेरे भाई वाले मुहावरे से जुड़ने की गुहार लगा रहे हैं। कबीर का कहना है की पैसे खाओ तो इधर-उधर अपने चोर भाइयों में दान करते जाओ। गुरुदेव का कहना है की दूसरों को दान देने से धन कहाँ चला जाता है इसका पता नहीं चलता, ना ही धन घटता है। सुरेश कलमाड़ी ने हर कंपनी वाले को पैसा खिलाया है। पूरा देश अपनी आँखों से देख रहा है, लेकिन कोई पता नहीं लगा पा रहा है की पैसा कहाँ गया। जब कबीर को भी पता नहीं चल रहा तो सीबीआई को क्या पता चलेगा।
बानी से पह्चानिये, साम चोर की घात ।
अन्दर की करनी से सब, निकले मुँह कई बात ॥
कबीर कहते हैं की समाज को बस आदमी की बोली से मतलब होना चाहिए। इस दोहे से उनका आशय पी जे थोमस की तरफ है। कबीर समझाना चाहते हैं की आदमी ने क्या किया है उससे कोई मतलब नहीं है। अगर उसे बोलना आता है तो वो कुछ भी कर सकता है। बोलते समय आवाज़ हमेशा अन्दर से आनी चाहिए, फिर आप कोर्ट से लड़ कर भी टिके रह सकते हैं। इसीलिए करो कुछ भी पर बोलो वही जिसकी जरूरत हो। जो बताने की जरूरत ना हो उसे पेट के अन्दर छुपा लो, फिर वो बात मुह से नहीं निकल सकती।
बैध मुआ रोगी मुआ, मुआ सकल संसार ।
एक कबीरा ना मुआ, जेहि के राम अधार ॥
ये कबीर वाणी का सबसे महत्त्वपूर्ण दोहा है। इसके दोहे के माध्यम से कबीर मनमोहन सिंह की तरफ इशारा कर रहे हैं। उनका कहना है की देर-सबेर सब पकड़े जा सकते हैं लेकिन जिसके सर पर किसी बड़े आदमी का हाथ हो वो पकड़ा नहीं जा सकता। एक एक करके सब पर आंच आ रही है ए राजा फस गए, जयराम संकट में हैं लेकिन मनमोहन अब भी सेफ हैं। उनके सर पर देवी का हाथ है, इसीलिए उन्हें कुछ नहीं हो सकता। अतः सबको चाहिए की अपने बॉस को पटा कर रखे, अगर आपके ऑफिस में आपका बॉस आपको पसंद करता है तो आप कुछ भी कर सकते हैं।
इतना ज्ञान पा कर मैं ख़ुशी से नाच रहा था और गुरुदेव निर्विकार भाव से अपनी जांघ खुजला रहे थे। इससे पहले की मैं कुछ कहता गुरुदेव का हाथ फिर से पेट पर गया और बोले, "अब जाओ। बाद में आना। प्रेसर बन गया है।" मैं ज्ञान की इस गंगा को अपने साथ लिए वहां से बह निकला।
पांच मिनट तक मैच का ब्यौरा देने के बाद उन्होंने मुझसे दोहा सुनाने को कहा। मैं आनंद-विभोर हो उठा। मैंने उन्हें दोहा सुनाया -
रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।
हीना जन्म अनमोल था, कोड़ी बदले जाय ॥
गुरुदेव ने मेरी तरफ हीनता सूचक नेत्रों से देखा और बोले, "पेपरो नहीं पढ़ते हो का?" मुझे आघात लगा। मैं हर रोज़ दो अख़बार मांगता हूँ। मैंने कहा पढता हूँ गुरुदेव, रोज पढता हूँ। "तब कहे इतना बकलोल जैसा कुएस्चन पूछ रहे हो," गुरुदेव ने कहा। मुझे आत्म-ग्लानी तो हुई पर मैं सुनता रहा।
फिर गुरुदेव ने विस्तार से बताया - "देखो ये जो दोहा है ये 'ए राजा' पे बेस्ड है। कबीर सबको राजा जैसा बनाने की सिख देना चाहते हैं। कबीर बता रहे हैं की आम आदमी रात सो कर गँवा देता है और दिन खाना खा कर। जब की ये जन्म तो प्रभु ने इस लिए दिया है की तुम वैभव संपन्न हो सको। ये जन्म अनमोल है खुद को पैसे कोड़ी से बदल लो तो ही इस जनम की सार्थकता है। रात को सो कर मत गवाओ, रात में दारु पी कर डील करो, दिन को खाना खा कर बर्बाद मत करो घूस खाओ और इसी तरह अपना मानव जन्म सफल बनाओ।"
गुरुदेव का असीम ज्ञान देख कर मुझसे रहा नहीं गया। मैंने जो भी दो-चार दोहे पढ़े थे सबका मतलब पूछने लगा। उन्होंने बड़ी प्रेम से हर दोहे को समझाया, उन दोहों का विवरण कुछ इस प्रकार है:
दान दिए धन ना घते, नदी ने घटे नीर ।
अपनी आँखों देख लो, यों क्या कहे कबीर ॥
इस दोहे से कबीर का आशय सुरेश कलमाड़ी की तरफ है। इस दोहे के माध्यम से कबीर चोर-चोर मौसेरे भाई वाले मुहावरे से जुड़ने की गुहार लगा रहे हैं। कबीर का कहना है की पैसे खाओ तो इधर-उधर अपने चोर भाइयों में दान करते जाओ। गुरुदेव का कहना है की दूसरों को दान देने से धन कहाँ चला जाता है इसका पता नहीं चलता, ना ही धन घटता है। सुरेश कलमाड़ी ने हर कंपनी वाले को पैसा खिलाया है। पूरा देश अपनी आँखों से देख रहा है, लेकिन कोई पता नहीं लगा पा रहा है की पैसा कहाँ गया। जब कबीर को भी पता नहीं चल रहा तो सीबीआई को क्या पता चलेगा।
बानी से पह्चानिये, साम चोर की घात ।
अन्दर की करनी से सब, निकले मुँह कई बात ॥
कबीर कहते हैं की समाज को बस आदमी की बोली से मतलब होना चाहिए। इस दोहे से उनका आशय पी जे थोमस की तरफ है। कबीर समझाना चाहते हैं की आदमी ने क्या किया है उससे कोई मतलब नहीं है। अगर उसे बोलना आता है तो वो कुछ भी कर सकता है। बोलते समय आवाज़ हमेशा अन्दर से आनी चाहिए, फिर आप कोर्ट से लड़ कर भी टिके रह सकते हैं। इसीलिए करो कुछ भी पर बोलो वही जिसकी जरूरत हो। जो बताने की जरूरत ना हो उसे पेट के अन्दर छुपा लो, फिर वो बात मुह से नहीं निकल सकती।
बैध मुआ रोगी मुआ, मुआ सकल संसार ।
एक कबीरा ना मुआ, जेहि के राम अधार ॥
ये कबीर वाणी का सबसे महत्त्वपूर्ण दोहा है। इसके दोहे के माध्यम से कबीर मनमोहन सिंह की तरफ इशारा कर रहे हैं। उनका कहना है की देर-सबेर सब पकड़े जा सकते हैं लेकिन जिसके सर पर किसी बड़े आदमी का हाथ हो वो पकड़ा नहीं जा सकता। एक एक करके सब पर आंच आ रही है ए राजा फस गए, जयराम संकट में हैं लेकिन मनमोहन अब भी सेफ हैं। उनके सर पर देवी का हाथ है, इसीलिए उन्हें कुछ नहीं हो सकता। अतः सबको चाहिए की अपने बॉस को पटा कर रखे, अगर आपके ऑफिस में आपका बॉस आपको पसंद करता है तो आप कुछ भी कर सकते हैं।
इतना ज्ञान पा कर मैं ख़ुशी से नाच रहा था और गुरुदेव निर्विकार भाव से अपनी जांघ खुजला रहे थे। इससे पहले की मैं कुछ कहता गुरुदेव का हाथ फिर से पेट पर गया और बोले, "अब जाओ। बाद में आना। प्रेसर बन गया है।" मैं ज्ञान की इस गंगा को अपने साथ लिए वहां से बह निकला।
Saturday, March 12, 2011
मनुष्य और कुत्ता - एक ललित निबंध
मनुष्य और कुत्तों का एक अनूठा सम्बन्ध है| मनुष्य ने आदि काल से इस बात का प्रचार किया है की कुत्ता मनुष्य का परम मित्र होता है| और मनुष्य कुत्ते को पालता है| सच्चाई तो ये है की मनुष्य हमेशा ही कुत्ता बनाने की चेष्टा करता है और सृष्टि के सृजन से आज तक वो कुत्ते के विलास की वास्तु रहा है| मनुष्य स्वभावतया ही स्वार्थी और डरपोक होता है। इसीलिए उसने ऐसी भ्रांतियां फैलाई हैं।मनुष्य का कुत्तों के प्रति भय और ऐसा प्रचार, मनुष्यों के भीरूपन और जलन का द्योतक है|
सत्य तो ये है की हर स्त्री की ये कामना होती है की उसका पति कुत्ते जैसा हो| वो सदैव उसके पल्लू से बंधा रहे। उसी के द्वार से रोटी खाए और इधर उधर मुह ना मारे। मरते दम तक उसके साथ रहे, और यदि उस पर कभी कोई आंच आये तो पति रुपी कुत्ता हमलावर पे टूट पड़े | पुरुषों की भी अपनी जीवन संगिनी में एक कुतिया देखने की लालसा होती है| वे कामना करते हैं की उनकी पत्नी मोहल्ले की सुंदरी हो| सारे कुत्ते उसके दीवाने हों| लेकिन कुतिया बस उनसे ही प्रेम करे| वो बाकी मनचले कुत्तों को अधीर तो करे, वो भी कुछ इस अदा से की सारे कुत्ते उसके पीछे दुम हिला कर चलते रहें और जरूरत पड़ने पर घर का सारा काम कर जायें| लेकिन जैसे ही कुतिया का काम हो जाये वो भौंक कर या काट कर, जो भी यथोचित हो, उन्हें भगा दे|
मानवों ने हमेशा ही कुत्तों को अपना आदर्श माना है| यही कारण है की कुत्ता किसी भी देवता का वाहन नहीं है, क्यूंकि कुत्ता सर्वोपरि है| महाभारत में भी कुत्तों को विशिष्ट स्थान प्राप्त है| जब युधिष्ठिर पर्वत पर चढ़ रहे थे और उनके सारे भाई दम तोड़ चुके थे, तो उनका मनोबल बढ़ने के लिए कुत्ता ही उनके साथ चला था| इस कुत्ते की प्रेरणा से ही युधिष्ठिर धर्मराज बन पाए|
मानव ने गोपनीय तरीके से सदैव कुत्ता बनाने की चेष्टा की है| मानव को कुत्ता बनाने की शिक्षा बचपन से ही दी जाती है| छात्रों को सिखाया जाता है की जीवन में आगे बढ़ने के लिए कुत्ते की तरह सोना जरूरी है| जब भी कोई आदमी साहसी कार्य करने की चेष्टा करता है, कुत्ते की ही उपमा दी जाती है| कहा जाता है - क्या तुम्हें पागल कुत्ते ने कटा है| इस उपमा में 'पागल' शब्द का इस्तेमाल मनुष्यों का कुत्तों के प्रति जलन का द्योतक है| जो मनुष्य तलवे चाटने की कुत्तिय परंपरा को अपना लेते हैं, उन्हें सफल मन जाता है और अक्सर ऐसे मनुष्य ऊँचाइयों पर पाए जाते हैं (जैसे की नेता और मैनेजमेंट गुरु)| जो लोग ऐसा कर पाने में बहुत सफल नहीं हो पते यानि चाटते हुए जिनके दांत लग जाने खतरा होता है, उन्हें चाटूकार की श्रेणी में रखते हैं|
धीरे- धीरे मानव सभ्यता का विकास हो रहा है और आदमी ने इस बात को खुले तौर पर स्वीकार करना शुरू कर दिया है की वो कुत्ता बनाना चाहता है| इसीलिए पाश्चात्य देशों में नारी को 'BITCH' अर्थात कुतिया कहने का प्रचालन जोर पकड़ रहा है| नेताओं की विशेष कर मानव रुपी कुत्ते पालने का बड़ा शौक होता है| इसलिए वे हमेशा ट्रेनी कुत्तों से घिरे रहते है, जो उनकी एक आवाज़ पर सड़कों पर लोटने लगते हैं, नारे लगाते हैं और हाथापाई पर भी उतर आते हैं| मनुष्य कुत्ते के अन्य काम, जैसे की रखवाली करना भी सीख रहा है| आज कल हर बंगले के बाहर 'सिक्यूरिटी गार्ड' नामक जीव का दिखना आम बात हो गयी है| सिक्यूरिटी एजेंसियां अपनी सार्थकता साबित करने के लिए कुत्तों को बदनाम कर रही है| एक सिक्यूरिटी कंपनी का नाम डोबर्मन था| उसके गार्ड रात को लोगों की अन्दर आने जाने के लिए २०-३० रुपये की मांग करते थे| जबकि कुत्तों ने आज तक ऐसी फिरौती की कभी मांग नहीं की है| मानवों की दुम का भी विकास नहीं हो पाता है| इससे यह सिद्ध होता है आगे डगर लम्बी है, मनुष्यों को सम्पूर्णतया कुत्ता बनाने में अभी कुछ और वक्त लगेगा|
सत्य तो ये है की हर स्त्री की ये कामना होती है की उसका पति कुत्ते जैसा हो| वो सदैव उसके पल्लू से बंधा रहे। उसी के द्वार से रोटी खाए और इधर उधर मुह ना मारे। मरते दम तक उसके साथ रहे, और यदि उस पर कभी कोई आंच आये तो पति रुपी कुत्ता हमलावर पे टूट पड़े | पुरुषों की भी अपनी जीवन संगिनी में एक कुतिया देखने की लालसा होती है| वे कामना करते हैं की उनकी पत्नी मोहल्ले की सुंदरी हो| सारे कुत्ते उसके दीवाने हों| लेकिन कुतिया बस उनसे ही प्रेम करे| वो बाकी मनचले कुत्तों को अधीर तो करे, वो भी कुछ इस अदा से की सारे कुत्ते उसके पीछे दुम हिला कर चलते रहें और जरूरत पड़ने पर घर का सारा काम कर जायें| लेकिन जैसे ही कुतिया का काम हो जाये वो भौंक कर या काट कर, जो भी यथोचित हो, उन्हें भगा दे|
मानवों ने हमेशा ही कुत्तों को अपना आदर्श माना है| यही कारण है की कुत्ता किसी भी देवता का वाहन नहीं है, क्यूंकि कुत्ता सर्वोपरि है| महाभारत में भी कुत्तों को विशिष्ट स्थान प्राप्त है| जब युधिष्ठिर पर्वत पर चढ़ रहे थे और उनके सारे भाई दम तोड़ चुके थे, तो उनका मनोबल बढ़ने के लिए कुत्ता ही उनके साथ चला था| इस कुत्ते की प्रेरणा से ही युधिष्ठिर धर्मराज बन पाए|
मानव ने गोपनीय तरीके से सदैव कुत्ता बनाने की चेष्टा की है| मानव को कुत्ता बनाने की शिक्षा बचपन से ही दी जाती है| छात्रों को सिखाया जाता है की जीवन में आगे बढ़ने के लिए कुत्ते की तरह सोना जरूरी है| जब भी कोई आदमी साहसी कार्य करने की चेष्टा करता है, कुत्ते की ही उपमा दी जाती है| कहा जाता है - क्या तुम्हें पागल कुत्ते ने कटा है| इस उपमा में 'पागल' शब्द का इस्तेमाल मनुष्यों का कुत्तों के प्रति जलन का द्योतक है| जो मनुष्य तलवे चाटने की कुत्तिय परंपरा को अपना लेते हैं, उन्हें सफल मन जाता है और अक्सर ऐसे मनुष्य ऊँचाइयों पर पाए जाते हैं (जैसे की नेता और मैनेजमेंट गुरु)| जो लोग ऐसा कर पाने में बहुत सफल नहीं हो पते यानि चाटते हुए जिनके दांत लग जाने खतरा होता है, उन्हें चाटूकार की श्रेणी में रखते हैं|
धीरे- धीरे मानव सभ्यता का विकास हो रहा है और आदमी ने इस बात को खुले तौर पर स्वीकार करना शुरू कर दिया है की वो कुत्ता बनाना चाहता है| इसीलिए पाश्चात्य देशों में नारी को 'BITCH' अर्थात कुतिया कहने का प्रचालन जोर पकड़ रहा है| नेताओं की विशेष कर मानव रुपी कुत्ते पालने का बड़ा शौक होता है| इसलिए वे हमेशा ट्रेनी कुत्तों से घिरे रहते है, जो उनकी एक आवाज़ पर सड़कों पर लोटने लगते हैं, नारे लगाते हैं और हाथापाई पर भी उतर आते हैं| मनुष्य कुत्ते के अन्य काम, जैसे की रखवाली करना भी सीख रहा है| आज कल हर बंगले के बाहर 'सिक्यूरिटी गार्ड' नामक जीव का दिखना आम बात हो गयी है| सिक्यूरिटी एजेंसियां अपनी सार्थकता साबित करने के लिए कुत्तों को बदनाम कर रही है| एक सिक्यूरिटी कंपनी का नाम डोबर्मन था| उसके गार्ड रात को लोगों की अन्दर आने जाने के लिए २०-३० रुपये की मांग करते थे| जबकि कुत्तों ने आज तक ऐसी फिरौती की कभी मांग नहीं की है| मानवों की दुम का भी विकास नहीं हो पाता है| इससे यह सिद्ध होता है आगे डगर लम्बी है, मनुष्यों को सम्पूर्णतया कुत्ता बनाने में अभी कुछ और वक्त लगेगा|
Wednesday, March 9, 2011
सोच
नशाखोर होना नस-खोर होने से बेहतर है।
-सुमित त्रिपाठी
-सुमित त्रिपाठी
Monday, March 7, 2011
घटा है
माँ इक रोती रही है रात भर,
लड़का उसका लहू किया गया है बीच बाज़ार में|
इक चीख हवा में तैर कर रह गयी है,
हुआ है बलात्कार मानवता के अन्धकार में|
इन्सां इक और आज ख़त्म हुआ है भुखमरी से,
शायद कुछ ज्यादा ही पीछे खड़े था गणतंत्र की कतार में|
पुलिस के डाँडो ने हड्डियां बस नाम की छोड़ी हैं,
उसके बदन में जो लगाता रहा नारे बदलाव की गुहार में|
दयालु भगवान् के आँखों के सामने ही ये सब हुआ होगा,
लोग कहते हैं वो मौजूद है हर जगह संसार में|
लड़का उसका लहू किया गया है बीच बाज़ार में|
इक चीख हवा में तैर कर रह गयी है,
हुआ है बलात्कार मानवता के अन्धकार में|
इन्सां इक और आज ख़त्म हुआ है भुखमरी से,
शायद कुछ ज्यादा ही पीछे खड़े था गणतंत्र की कतार में|
पुलिस के डाँडो ने हड्डियां बस नाम की छोड़ी हैं,
उसके बदन में जो लगाता रहा नारे बदलाव की गुहार में|
दयालु भगवान् के आँखों के सामने ही ये सब हुआ होगा,
लोग कहते हैं वो मौजूद है हर जगह संसार में|
Wednesday, March 2, 2011
शहर मेरा..
इमारत एक नयी खड़ी की गयी है,
शहर के बीचो-बीच
मौल बुलाते हैं इसे सारे;
आगे थोडा चलो तो राजभवन पड़ता है,
अनैतिक नीतियाँ सब यहीं से नियति बनती हैं
उन लोगों की जिन्हें आम आदमी बुलाते हैं;
दायें मुड़ जाओ तो थिएटर है एक,
शहर-विदेशों में नाम बहुत है इसका
झील तक उतरती हैं सीढियाँ इसकी
और क्षमता ३०० बताते हैं बैठने की;
पता नहीं लोग फिर भी क्यूँ फूटपाथ पर सोते हैं!
शहर के बीचो-बीच
मौल बुलाते हैं इसे सारे;
आगे थोडा चलो तो राजभवन पड़ता है,
अनैतिक नीतियाँ सब यहीं से नियति बनती हैं
उन लोगों की जिन्हें आम आदमी बुलाते हैं;
दायें मुड़ जाओ तो थिएटर है एक,
शहर-विदेशों में नाम बहुत है इसका
झील तक उतरती हैं सीढियाँ इसकी
और क्षमता ३०० बताते हैं बैठने की;
पता नहीं लोग फिर भी क्यूँ फूटपाथ पर सोते हैं!
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