Tuesday, January 18, 2011

शुरुआत

एक मित्र ने मुझसे कहा की मेरा लिखा व्यंग उसे बहुत पसंद आता है, और मुझे लिखते रहना चाहिए।(वैसे मैंने आज तक व्यंग नहीं लिखा है, शायद मेरे लिखने की भद्दी शैली ने उसे हसने पर मजबूर किया हो) फिर भी मैं उसी तरह प्रसन्ना हुआ जैसा की इमरान हाश्मी होता है जब उसे कोई अच्छा कलाकार कहता है। खुद को हिंदी साहित्य का उभरता हुआ चेहरा जान कर मैंने उसकी सलाह बिलकुल वैसे ही मान ली जैसे मनमोहन सिंह ने सोनिया गाँधी की सलाह मान ली और देश के प्रधानमंत्री बन बैठे। अब इस ब्लॉग का भी वही हाल होगा जो इस देश का है। यहाँ भी अनेकता में एकता होगी, मतलब मैं अपने अनेको घटिया विचार यहाँ व्यक्त करूँगा। फिर मेरे जिम्मेदार पाठकों को यह भार सौंप दूंगा की उनको एक सूत्र में पिरो कर अपने हिसाब का कोई मतलब निकल लें। इस ब्लॉग की संरचना भी प्रजातान्त्रिक होगी यानि की हर पाठक को मेरे व्यक्तव्यो पर टिपण्णी करने की आज़ादी होगी मगर उनको मिटने की शक्ति मेरे हाथों में होगी।
अभी मैं पूरी तरह से मनमोहन सिंह जैसा नेता नहीं बना हूँ और इससे बड़ा भाषण यहाँ नहीं लिख सकता। बस कामना करता हूँ की आगे कुछ ऐसा लिख सकूँगा जो आप लोगों को पढने में रोचक लगे।

-अंजनिदास आज़ाद

2 comments:

  1. संवाद के अधिकार देने के लिए धन्यवाद!

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